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Bhagwadgeeta chapter 9 verses with meaning

Bhagwadgeeta chapter 9 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 9 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 9 राजविद्याराजगुह्ययोग|

Chapter 9 of the Bhagavad Gita is titled "Rajavidyarajaguhyayoga". In this chapter, Lord Krishna imparts deep spiritual knowledge to Arjuna, reveals the essence of devotion and the nature of the Supreme Being.

Lord Krishna begins by emphasizing the importance of unwavering faith and devotion. He explains that those who have a pure heart and surrender themselves completely to the Supreme Being receive His divine grace and protection.

Bhagwadgeeta chapter 9 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 9 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 9 राजविद्याराजगुह्ययोग|
Bhagwadgeeta chapter 9 verses with meaning
This chapter highlights the concept of "Bhakti Yoga", the path of devotion. Lord Krishna explains that one can achieve spiritual liberation through wholehearted devotion and surrender to the Supreme Being. He encourages Arjuna to perform his duties as a devotee of God.

Krishna discusses various aspects of devotion, such as the importance of offering one's actions, thoughts, and even failures to the Supreme Being. He assures Arjuna that those who surrender everything to Him are embraced by His divine love and protection.

The chapter also touches upon the idea that God is present in all aspects of life, not just in religious rituals or holy places. Krishna emphasizes that true devotion goes beyond outward rituals and is an affair of the heart.

Krishna mentions that even those who may have led sinful lives but turn to Him with true devotion are forgiven and spiritually elevated. He emphasizes the inclusiveness and universality of divine love and grace.

The chapter concludes with Lord Krishna encouraging Arjuna to constantly remember and reflect upon Him. He assures that those who remain steadfast in their devotion and recognize the divine presence in all aspects of life will attain spiritual enlightenment and liberation.

In short, Chapter 9 of the Bhagavad Gita teaches unwavering devotion, the nature of the divine, and the path to spiritual liberation through whole-hearted surrender to God. It emphasizes that real devotion is beyond external rituals and is accessible to all who sincerely seek it.

भगवद गीता के अध्याय 9 का शीर्षक "राजविद्याराजगुह्ययोग" है। इस अध्याय में, भगवान कृष्ण अर्जुन को गहन आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करते हैं, भक्ति के सार और परमात्मा की प्रकृति को प्रकट करते हैं। 

भगवान कृष्ण अटूट विश्वास और भक्ति के महत्व पर जोर देकर शुरुआत करते हैं। वह समझाते हैं कि जिनका हृदय शुद्ध होता है और वे स्वयं को पूरी तरह से परमात्मा के प्रति समर्पित कर देते हैं, उन्हें उनकी दिव्य कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है।

कृष्ण बताते हैं कि वह ब्रह्मांड में सभी प्राणियों और हर चीज का अंतिम स्रोत हैं। वह शाश्वत, अपरिवर्तनीय ब्रह्म की अवधारणा की व्याख्या करते हैं, जो सभी प्रकटनों के पीछे अंतिम वास्तविकता है।

पढ़िए भगवद्गीता का अध्याय 8 अर्थ सहित 

यह अध्याय भक्ति के मार्ग "भक्ति योग" की अवधारणा पर प्रकाश डालता है। भगवान कृष्ण बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति संपूर्ण हृदय से भक्ति और परमात्मा के प्रति समर्पण के माध्यम से आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त कर सकता है। वह अर्जुन को ईश्वर की भक्ति के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

कृष्ण भक्ति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करते हैं, जैसे कि अपने कार्यों, विचारों और यहां तक कि असफलताओं को भी परमात्मा को अर्पित करने का महत्व। उन्होंने अर्जुन को आश्वासन दिया कि जो लोग उन्हें अपना सब कुछ समर्पित कर देते हैं, वे उनके दिव्य प्रेम और सुरक्षा से आलिंगनबद्ध होते हैं।

अध्याय इस विचार को भी छूता है कि ईश्वर जीवन के सभी पहलुओं में मौजूद है, न कि केवल धार्मिक अनुष्ठानों या पवित्र स्थानों में। कृष्ण इस बात पर जोर देते हैं कि सच्ची भक्ति बाहरी रीति-रिवाजों से परे है और यह दिल का मामला है।

कृष्ण उल्लेख करते हैं कि जिन लोगों ने पाप से भरा जीवन जीया हो, लेकिन सच्ची भक्ति के साथ उनकी ओर मुड़ते हैं, उन्हें भी माफ कर दिया जाता है और आध्यात्मिक रूप से ऊंचा उठा दिया जाता है। वह दिव्य प्रेम और अनुग्रह की समावेशिता और सार्वभौमिकता पर जोर देते हैं।

अध्याय का समापन भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को लगातार याद करने और उस पर चिंतन करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ होता है। वह आश्वासन देते हैं कि जो लोग अपनी भक्ति में दृढ़ रहते हैं और जीवन के सभी पहलुओं में दिव्य उपस्थिति को पहचानते हैं, उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और मुक्ति प्राप्त होगी।

संक्षेप में, भगवद गीता का अध्याय 9 अटूट भक्ति, परमात्मा की प्रकृति और भगवान के प्रति पूरे दिल से समर्पण के माध्यम से आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग सिखाता है। यह इस बात पर जोर देता है कि वास्तविक भक्ति बाहरी अनुष्ठानों से परे है और उन सभी के लिए सुलभ है जो ईमानदारी से इसकी तलाश करते हैं।

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गीता नवां अध्याय श्लोक – १

श्रीभगवानुवाच इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे ।

ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥९-१॥

-: अर्थात  :-

श्री भगवान बोले- तुझ दोषदृष्टिरहित भक्त के लिए इस परम गोपनीय विज्ञान सहित ज्ञान को पुनः भली भाँति कहूँगा, जिसको जानकर तू दुःखरूप संसार से मुक्त हो जाएगा॥1॥

-: Meaning In English :-

THE BLESSED LORD SAID:

To thee who dost not cavil, I shall now declare this, the greatest secret, knowledge combined with experience, which having known thou shall be liberated from evil.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २

राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम् ।

प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम् ॥९-२॥

-: अर्थात  :-

यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा, सब गोपनीयों का राजा, अति पवित्र, अति उत्तम, प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है॥2॥

-: Meaning In English :-

The Sovereign Science, the Sovereign Secret, the Supreme Purifier is this; immediately comprehensible, unopposed to Dharma, very easy to perform, imperishable.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३

अश्रद्दधानाः पुरुषा धर्मस्यास्य परन्तप ।

अप्राप्य मां निवर्तन्ते मृत्युसंसारवर्त्मनि ॥९-३॥

-: अर्थात  :-

हे परंतप! इस उपयुक्त धर्म में श्रद्धारहित पुरुष मुझको न प्राप्त होकर मृत्युरूप संसार चक्र में भ्रमण करते रहते हैं॥3॥

-: Meaning In English :-

Persons having no faith in this Dharma, O harasser of thy foes, without reaching Me, remain verily in the path of the mortal world.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ४

मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना ।

मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः ॥९-४॥

-: अर्थात  :-

मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्‌ जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ॥4॥

-: Meaning In English :-

By Me all this world is pervaded, My form un-manifested. All beings dwell in Me; and I do not dwell in them.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ५

न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम् ।

भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः ॥९-५॥

-: अर्थात  :-

वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है॥5॥

-: Meaning In English :-

Nor do those beings dwell in Me; behold My Divine Yoga! Sustaining all the beings, but not dwelling in them, is My Self, the cause of beings.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ६

यथाकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान् ।

तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ॥९-६॥

-: अर्थात  :-

जैसे आकाश से उत्पन्न सर्वत्र विचरने वाला महान्‌ वायु सदा आकाश में ही स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्प द्वारा उत्पन्न होने से संपूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं, ऐसा जान॥6॥

-: Meaning In English :-

As the mighty wind moving everywhere rests ever in the Akasa, so, know thou, do all beings, rest in Me.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ७

सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम् ।

कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥९-७॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! कल्पों के अन्त में सब भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं अर्थात्‌ प्रकृति में लीन होते हैं और कल्पों के आदि में उनको मैं फिर रचता हूँ॥7॥

-: Meaning In English :-

All beings, O son of Kunti, go into My Prakriti at the end of a kalpa. I send them forth again at the beginning of (the next) kalpa.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ८

प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः ।

भूतग्राममिमं कृत्स्नम वशं प्रकृतेर्वशात् ॥९-८॥

-: अर्थात  :-

अपनी प्रकृति को अंगीकार करके स्वभाव के बल से परतंत्र हुए इस संपूर्ण भूतसमुदाय को बार-बार उनके कर्मों के अनुसार रचता हूँ॥8॥

-: Meaning In English :-

Resorting to My Prakriti, I again and again send forth the whole multitude of beings, powerless under the control of the Prakriti.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ९

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनंजय ।

उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु ॥९-९॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! उन कर्मों में आसक्तिरहित और उदासीन के सदृश (जिसके संपूर्ण कार्य कर्तृत्व भाव के बिना अपने आप सत्ता मात्र ही होते हैं उसका नाम ‘उदासीन के सदृश’ है।) स्थित मुझ परमात्मा को वे कर्म नहीं बाँधते॥9॥

-: Meaning In English :-

Nor do these acts, O Dhananjaya, bind Me, remaining like one unconcerned, unattached to those acts.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १०

मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् ।

हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ॥९-१०॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! मुझ अधिष्ठाता के सकाश से प्रकृति चराचर सहित सर्वजगत को रचती है और इस हेतु से ही यह संसारचक्र घूम रहा है॥10॥

-: Meaning In English :-

By Me presiding, Prakriti produces the moving and the unmoving; because of this, O son of Kunti, the world revolves.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ११

अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम् ।

परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् ॥९-११॥

-: अर्थात  :-

मेरे परमभाव को न जानने वाले मूढ़ लोग मनुष्य का शरीर धारण करने वाले मुझ संपूर्ण भूतों के महान्‌ ईश्वर को तुच्छ समझते हैं अर्थात्‌ अपनी योग माया से संसार के उद्धार के लिए मनुष्य रूप में विचरते हुए मुझ परमेश्वर को साधारण मनुष्य मानते हैं॥11॥

-: Meaning In English :-

Fools disregard Me clad in human form, not knowing My higher being as the Great Lord of beings.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १२

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः ।

राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः ॥९-१२॥

-: अर्थात  :-

वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्तचित्त अज्ञानीजन राक्षसी, आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किए रहते हैं॥12॥

-: Meaning In English :-

Of vain hopes, of vain actions, of vain knowledge, devoid of discrimination, partaking only of the delusive nature of Rakshasas and Asuras.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १३

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।

भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ॥९-१३॥

-: अर्थात  :-

परंतु हे कुन्तीपुत्र! दैवी प्रकृति के आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं॥13॥

-: Meaning In English :-

The Mahatmas, O son of Pritha, partaking of the nature of the Devas, worship Me with mind turned to no other, knowing (Me) as the imperishable source of all beings.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १४

सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्च दृढव्रताः ।

नमस्यन्तश्च मां भक्त्या नित्ययुक्ता उपासते ॥९-१४॥

-: अर्थात  :-

वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरंतर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं॥14॥

-: Meaning In English :-

Always talking of me, strenuous, firm in vows and reverent, they worship Me with love, always devout.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १५

ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते ।

एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् ॥९-१५॥

-: अर्थात  :-

दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार ब्रह्म का ज्ञानयज्ञ द्वारा अभिन्नभाव से पूजन करते हुए भी मेरी उपासना करते हैं और दूसरे मनुष्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट स्वरूप परमेश्वर की पृथक भाव से उपासना करते हैं।।15।।

-: Meaning In English :-

Worshipping by the wisdom-sacrifice, others adore Me, the All-faced, in various ways, as One, as different.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १६

अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम् ।

मन्त्रोऽहमहमेवाज्यम हमग्निरहं हुतम् ॥९-१६॥


-: अर्थात  :-

क्रतु मैं हूँ, यज्ञ मैं हूँ, स्वधा मैं हूँ, औषधि मैं हूँ, मंत्र मैं हूँ, घृत मैं हूँ, अग्नि मैं हूँ और हवनरूप क्रिया भी मैं ही हूँ॥16॥


-: Meaning In English :-

I am kratu, I am yajna, I am svadha, I am aushadha, I am mantra, Myself the butter, I am fire, I the act of offering.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १७

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः ।

वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च ॥९-१७॥

-: अर्थात  :-

इस संपूर्ण जगत्‌ का धाता अर्थात्‌ धारण करने वाला एवं कर्मों के फल को देने वाला, पिता, माता, पितामह, जानने योग्य, (गीता अध्याय 13 श्लोक 12 से 17 तक में देखना चाहिए) पवित्र ओंकार तथा ऋग्वेद, सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ॥17॥

-: Meaning In English :-

I am the father of this world, the mother, the dispenser and grandshire; I am the knowable, the purifier, the syllable ‘Om’ and also the Rik, the Saman and the Yajus also.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १८

गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत् ।

प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम् ॥९-१८॥

-: अर्थात  :-

प्राप्त होने योग्य परम धाम, भरण-पोषण करने वाला, सबका स्वामी, शुभाशुभ का देखने वाला, सबका वासस्थान, शरण लेने योग्य, प्रत्युपकार न चाहकर हित करने वाला, सबकी उत्पत्ति-प्रलय का हेतु, स्थिति का आधार, निधान (प्रलयकाल में संपूर्ण भूत सूक्ष्म रूप से जिसमें लय होते हैं उसका नाम ‘निधान’ है) और अविनाशी कारण भी मैं ही हूँ॥18॥

-: Meaning In English :-

I am the Goal, the Sustainer, the Lord, the Witness, the Abode, the Shelter and the Friend, the Origin, Dissolution and Stay, the Treasure-house, the Seed imperishable


गीता नवां अध्याय श्लोक – १९

तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च ।

अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन ॥९-१९॥

-: अर्थात  :-

मैं ही सूर्यरूप से तपता हूँ, वर्षा का आकर्षण करता हूँ और उसे बरसाता हूँ। हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु हूँ और सत्‌-असत्‌ भी मैं ही हूँ॥19॥

-: Meaning In English :-

I give heat, I hold back and send forth rain, I am the immortality as well as death, existence and non-existence, O Arjuna.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २०

त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते ।

ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान् ॥९-२०॥

-: अर्थात  :-

तीनों वेदों में विधान किए हुए सकाम कर्मों को करने वाले, सोम रस को पीने वाले, पापरहित पुरुष (यहाँ स्वर्ग प्राप्ति के प्रतिबंधक देव ऋणरूप पाप से पवित्र होना समझना चाहिए) मुझको यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते हैं, वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप स्वर्गलोक को प्राप्त होकर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोगों को भोगते हैं॥20॥

-: Meaning In English :-

Men of the three Vedas, the soma-drinkers, purified from sin, worshipping Me by sacrifices, pray for the goal of heaven; they reach the holy world of the Lord of the Gods and enjoy in heaven the heavenly pleasures of the Gods.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २१

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।

एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥९-२१॥

-: अर्थात  :-

वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार स्वर्ग के साधनरूप तीनों वेदों में कहे हुए सकामकर्म का आश्रय लेने वाले और भोगों की कामना वाले पुरुष बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग में जाते हैं और पुण्य क्षीण होने पर मृत्युलोक में आते हैं॥21॥

-: Meaning In English :-

They, having enjoyed that spacious world of Svarga, their merit (punya) exhausted, enter the world of the mortals; thus following the Dharma of the Triad, desiring (objects of) desires, they attain to the state of going and returning.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २२

अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते ।

तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ॥९-२२॥

-: अर्थात  :-

जो अनन्यप्रेमी भक्तजन मुझ परमेश्वर को निरंतर चिंतन करते हुए निष्कामभाव से भजते हैं, उन नित्य-निरंतर मेरा चिंतन करने वाले पुरुषों का योगक्षेम (भगवत्‌स्वरूप की प्राप्ति का नाम ‘योग’ है और भगवत्‌प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम ‘क्षेम’ है) मैं स्वयं प्राप्त कर देता हूँ॥22॥

-: Meaning In English :-

Those men who, meditating on Me as non-separate, worship Me all around – to them who are ever devout, I secure gain and safety.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २३

येऽप्यन्यदेवताभक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः ।

तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् ॥९-२३॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! यद्यपि श्रद्धा से युक्त जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैं, वे भी मुझको ही पूजते हैं, किंतु उनका वह पूजन अविधिपूर्वक अर्थात्‌ अज्ञानपूर्वक है॥23॥

-: Meaning In English :-

Even those who, devoted to other Gods, worship Them with faith, worship Myself, O son of Kunti, in ignorance.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २४

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च ।

न तु मामभिजानन्ति तत्त्वेनातश्च्यवन्ति ते ॥९-२४॥

-: अर्थात  :-

क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूँ, परंतु वे मुझ परमेश्वर को तत्त्व से नहीं जानते, इसी से गिरते हैं अर्थात्‌ पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं॥24॥

-: Meaning In English :-

I am indeed the Enjoyer, as also the Lord, of all sacrifices; but they do not know Me in truth; whence they fail.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २५

यान्ति देवव्रता देवान्पितॄन् यान्ति पितृव्रताः ।

भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ॥९-२५॥

-: अर्थात  :-

देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं, भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं और मेरा पूजन करने वाले भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसीलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं होता (गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में देखना चाहिए)॥25॥

-: Meaning In English :-

Votaries of the Gods go to the Gods; to the Pitris go the votaries of the Pitris; to the Bhutas go the worshippers of the Bhutas; My worshippers come to Myself.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २६

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति ।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः ॥९-२६॥

-: अर्थात  :-

जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्धबुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ॥26॥

-: Meaning In English :-

When one offers to Me with devotion a leaf, a flower, a fruit, water – that I eat, offered with devotion by the pure-minded.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २७

यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् ।

यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥९-२७॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर॥27॥

-: Meaning In English :-

Whatever thou does, whatever thou eats, whatever thou sacrifices, whatever thou gives, in whatever austerity thou engages, do it as an offering to Me.


गीता नवां अध्याय श्लोक – १८

शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः ।

संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥९-२८॥

-: अर्थात  :-

इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो जाएगा और उनसे मुक्त होकर मुझको ही प्राप्त होगा। ॥28॥

-: Meaning In English :-

Thus shalt thou be liberated from the bonds of actions which are productive of good and evil results; equipped in mind with the Yoga of renunciation and liberated, thou shall come to Me.


गीता नवां अध्याय श्लोक – २९

समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः ।

ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम् ॥९-२९॥


-: अर्थात  :-

मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, न कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है, परंतु जो भक्त मुझको प्रेम से भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट (जैसे सूक्ष्म रूप से सब जगह व्यापक हुआ भी अग्नि साधनों द्वारा प्रकट करने से ही प्रत्यक्ष होता है, वैसे ही सब जगह स्थित हुआ भी परमेश्वर भक्ति से भजने वाले के ही अंतःकरण में प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होता है) हूँ॥29॥

-: Meaning In English :-

The same I am to all beings; to Me there is none hateful or dear; but whoso worship Me with devotion, they are in Me and I am also in them.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३०

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक् ।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥९-३०॥

-: अर्थात  :-

यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌ उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है॥30॥

-: Meaning In English :-

If one of even very evil life worships Me, resorting to none else, he must indeed be deemed righteous, for he is rightly resolved.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३१

क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति ।

कौन्तेय प्रति जानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ॥९-३१॥

-: अर्थात  :-

वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा रहने वाली परम शान्ति को प्राप्त होता है। हे अर्जुन! तू निश्चयपूर्वक सत्य जान कि मेरा भक्त नष्ट नहीं होता॥31॥

-: Meaning In English :-

Soon he becomes righteous and attains eternal peace; do thou, O son of Kunti, proclaim that my devotee never perishes.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३२

मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।

स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥९-३२॥

-: अर्थात  :-

हे अर्जुन! स्त्री, वैश्य, शूद्र तथा पापयोनि चाण्डालादि जो कोई भी हों, वे भी मेरे शरण होकर परमगति को ही प्राप्त होते हैं॥32॥

-: Meaning In English :-

For, finding refuge in Me, they also who, O son of Pritha, may be of a sinful birth – women, vaisyas as well as sudras – even they attain to the Supreme Goal.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३३

किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।

अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥९-३३॥

-: अर्थात  :-

फिर इसमें कहना ही क्या है, जो पुण्यशील ब्राह्मण था राजर्षि भक्तजन मेरी शरण होकर परम गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर॥33॥

-: Meaning In English :-

How mush more then the holy Brahmanas and devoted royal saints! Having reached this transient joyless world, do thou worship Me.


गीता नवां अध्याय श्लोक – ३४

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ।

मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ॥९-३४॥

-: अर्थात  :-

मुझमें मन वाला हो, मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो, मुझको प्रणाम कर। इस प्रकार आत्मा को मुझमें नियुक्त करके मेरे परायण होकर तू मुझको ही प्राप्त होगा॥34॥

-: Meaning In English :-

Fix thy mind on Me, be devoted to Me, sacrifice to Me, bow down to Me. Thus steadied, with Me as thy Supreme Goal, thou shall reach Myself, the Self.

पढ़िए भगवद गीता अध्याय 10 अर्थ सहित 

|| ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्री कृष्णार्जुनसंवादे राजविद्याराजगुह्ययोगो नाम नवमोऽध्यायः ||

Bhagwadgeeta chapter 9 Shlok with meaning in hindi and english, Shreemad Bhagwat geeta chapter 9 | श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 9 राजविद्याराजगुह्ययोग|

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om kreem kalikaaye namah mantra benefits, How can I please Mahakali/Mata Kali?, Benefits of chanting mahakali mantra. Goddess kali is the incarnation of durga and she is capable to eradicate the negative energies, evil eye effects, kala jadu, black magic etc.  Kali mata is very aggressive and so people fear of her but there is not need to think negative of her because mother don’t harm anyone, she just protect devotees from evil energies.  benefits of om kreem kalikaaye namah mantra हिंदी में पढ़िए  ॐ क्रीं कालिकाये नमः मंत्र के लाभ Let’s see the benefits  of chanting Om kreem kalikaaye namah mantra : Meaning of kreem mantra: Kreem is a beeja mantra of goddess Kali, yogis and saints practice this beej-mantra to seek blessings of goddess. This divine beeja-mantra invokes the blessings of goddess kali and bless the devotee with health, wealth and salvation.  Benefits of chanting ऊँ क्रीं कालिकायै नमः – This mantra is very powerful and is capable to to transform the life of ch

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